The arrival of a second child

आज अदिति का मन काम मेँ नहीं लग रहा था|बार बार  सिनु की बातें उसके कानों में गूंज रही थी कि ” माँ मैं बड़ी हूँ या छोटी आज बता ही दो ?” क्योकि, निमु जब किसी चीज़ के लिए रोती है तो कहती हो “बेटा तुम बड़ी हो उसे यह चीज़ दे दो, उसका ध्यान रखो तुम उसकी बड़ी बहन हो”|लेकिन जब “मैं अपनी मर्जी से कुछ करती  हूँ,  तो कहती हो तुम ऐसा मत करो अभी तुम बहुत छोटी हो”|

   अदिति अतीत के पन्नों को पलटने लगती है, आज सिनु का जन्म  हुआ है|  कितने खुशी का दिन है, लगता है परी आसमान से उतर के हमारे घर आ गई है| सबके  प्यार, दुलार और ममता की छाँव में सिनु धीरे धीरे बड़ी होने लगी| मम्मी पापा और पुरे घर पर सिनु का एकछत्र राज चलता| पापा उसे कंधे पर उठा सारे घुमाते|उनकी तो पूरी दुनिया जैसे सिमटकर सिनु के पास आ गई थी|

  वक़्त गुजरता गया, सिनु चार बरस की हो गई|अब उन्हें लगने लगा की कोई और सिनु के साथ होना चाहिए | जो हमारे बाद भी उसका साथ दे सके, उसे अकेलेपन की कमी कभी महसूस न हो|यही सब सोच कर निमु को दुनिया में लाया गया |

  निमु के आने के बाद सिनु के तो पाँव जमीन पर नहीं पड़ते थे | बहुत प्यार करती| हमेशा उसके आसपास ही घूमती| पर जब अपनी जगह निमु को देखती, तो बालमन को थोड़ा बुरा तो लगता| जैसे  अब मम्मी के पास निमु सोती, जो उसके सोने की जगह थी| जहाँ वो इतने सालों से सोती रही ,”अब निमु के आने पर उसकी जगह बदल गयी “|पहले मम्मी पापा के ” पुरे समय पर सिनु का राज था , पर अब कुछ वक़्त निमु का भी हो गया था “|

   उसके  कोमल  मन पर  कोई  प्रभाव  न  पड़े,  इसका  पुरा ख्याल  रखा जाता | अब भी वो घर की शहजादी थी, जिसे फूलो की तरह प्यार से सँवारा  जा रहा था | हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता की ” उसके बालमन में कही ये न बैठ जाए कि, मेरी बहन के आने के बाद मेरा प्यार कम  हो गया ” |

   इतनी सावधानी बरतने के बाद भी कभी  कभी न चाहते हुए भी दोनों के बीच, “छोटी का पलड़ा भारी हो जाता” | जब चीज़ एक ही होती और दोनों के बीच उसको लेकर झगड़ा होता, तो सिनु को ही समझाते कि ,”बेटा वो छोटी है तू तो बड़ी है उसे दे दे  तेरे लिए इससे भी अच्छा  दूसरा  ला देंगे” |कही न कही अचानक सिनु से हम, “बड़ी का उम्मीद लगा लेते”  और यही गलत होता |

   मुझे याद है जब दोनों अपने अपने खिलौने से खेल रही होती|  तब हम सिनु को कहते, “बेटा उसके साथ खेलो जैसा वो खेलना चाहती है ताकि उसे आसानी से खिला पाएं”  क्योकि निमु को खिलाना बहुत मुश्किल काम होता | सिनु भी अपना पसंद का खेल छोड़, निमु के हिसाब से खेलने लगती, ताकि निमु खाना खा ले |

   आज सोचती हूँ तो ये गलत लगता है, “वो भी तो छोटी बच्ची है हम उससे ये उम्मीद क्यों करते है की वो हमारा काम आसान कर दे” | उसे भी तो अपने हिसाब से खेलने का पूरा अधिकार है| वो कहती मुझे बाहर खेलने जाना है, हम चाहते कि वो घर पर ही अपनी बहन के साथ खेल ले, ताकि हम अपना काम निपटा सके| 

  पडोस का वो किस्सा – मुझे याद है “जब एक बच्ची अपने खेल में वयस्त थी | उसका छोटा भाई उसके पास रास्ते में आ गया, तभी एक साइकिल उसके भाई  के पास से होती हुई गुजर गई ” और उसके पापा अचानक से आकर उस बच्ची पर जोर से चिल्लाने लगे, “तुम अपने खेल में लगी हो अभी साइकिल वाला तेरे छोटे भाई को मार  देता तो ?, तू बड़ी है उसका ख्याल नहीं रख सकती” |वो बच्ची अपना मायूस चेहरा लेकर अपने छोटे भाई को पकड़ कर एक तरफ हो जाती है |

 निष्कर्ष

     मुझे उसके चेहरे पर प्रश्न  झलकता नजर आया की “मैं भी तो  छोटी ही हूँ ,क्या दूसरे बच्चे के आते ही पहला बच्चा अचानक से बड़ा हो जाता है?” |उस बच्चे की मनस्थिति क्या होती है? यह समझना बहुत जरुरी होता है, हर उन माँ  बाप के लिए जिनके  दो  बच्चे कम अन्तराल के है | हम बच्चे को अपनी जरुरत के हिसाब से छोटा और बड़ा  बना देते है | पहला बच्चा भी छोटा ही होता है, उससे उसका बचपन कभी नहीं छीनना चाहिए |उसे उसकी उम्र से ही बड़ा बनना चाहिए,परिस्थति और जरुरत के हिसाब से नहीं |

  हमेशा उसके मानसिक स्थिति को ध्यान में रख कर ही निर्णय लेना चाहिए |उसके साथ भरपूर वक़्त बिताना चाहिए , खेलना चाहिए ,उसे पहले से ज्यादा प्यार करना चाहिए,जब भी मौका मिले उसे पार्क ,बाजार  आदि जगहों पर ले जाना चाहिए |क्योंकि मां का पर्याप्त समय न मिलने पर बच्चा ज़िद्दी बन जाता है| साथ ही वो अपने छोटे भाई/बहन से मन ही मन नफ़रत करने लगता है| उसे ऐसा महसूस होता है कि छोटे/छोटी के आने के बाद से ही आप उसे अपने से दूर रखती हैं|जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है उसकी मानसिकता और भी मज़बूत होती जाती है, जो आगे चलकर आपके लिए परेशानी का कारण बन सकती है|

  बड़े बच्चे में छोटे को लेकर असुरक्षा की भावना आ सकती है। उसे ऐसा लग सकता है कि छोटे बच्चे के आ जाने के कारण माता-पिता उससे कम प्रेम करते हैं। ऐसे में वो माता-पिता का ध्यान अपनी और करने के लिए नखरे करता है या खुद को नुकसान भी पहुंचा सकता है।

 अदिति को अपनी आत्मा की आवाज़ समझ में आ गई | उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक आ गई ,अब उसे पता चल गया था की उसे क्या करना है |

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4 thoughts on “बाल मन की उलझन

  1. Many congratulations on this new journey….thanks for sharing your meaningful insight on such an important issue….. related to children’s physcology…thanks again and wishing you all the very best…..

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